Tuesday, January 27, 2009

३३. अम्बाजी


अम्बाजी : आबू के पास आरासुर श्वेत पर्वत पर अम्बाजी का मंदीर हे ! लोकदेवी के रूप मे अम्बाजी की बड़ी मान्यता हे ! भक्तो की भीड़ लगी रहती हे ! अम्बाजी चक्खड़ा चारण की बहिन थी और बिरवड़ी जी चक्खड़ा चारण की पुत्री थी !

गुजरात का अम्बाजी मंदिर। माँ अम्बा-भवानी के शक्तिपीठों में से एक इस मंदिर के प्रति माँ के भक्तों में अपार श्रद्धा है। यह मंदिर बेहद प्राचीन है। मंदिर के गर्भगृह में माँ की कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है। यहाँ माँ का एक श्री-यंत्र स्थापित है। इस श्री-यंत्र को कुछ इस प्रकार सजाया जाता है कि देखने वाले को लगे कि माँ अम्बे यहाँ साक्षात विराजी हैं। नवरात्र में यहाँ का पूरा वातावरण शक्तिमय रहता है।

शक्तिस्वरूपा अम्बाजी देश के अत्यंत प्राचीन 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। वस्तुतः हिंदू धर्म के प्रमुख बारह शक्तिपीठ हैं। इनमें से कुछ शक्तिपीठ हैं- काँचीपुरम का कामाक्षी मंदिर, मलयगिर‍ि का ब्रह्मारंब मंदिर, कन्याकुमारी का कुमारिका मंदिर, अमर्त-गुजरात स्थित अम्बाजी का मंदिर, कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर, प्रयाग का देवी ललिता का मंदिर, विंध्या स्थित विंध्यवासिनी माता का मंदिर, वाराणसी की माँ विशालाक्षी का मंदिर, गया स्थित मंगलावती और बंगाल की सुंदर भवानी और असम की कामख्या देवी का मंदिर। ज्ञात हो कि सभी शक्तिपीठों में माँ के अंग गिरे हैं।

अम्बा भवानी मंदिर में माँ का दिल गिरा है। दिल गिरने के कारण यहाँ माँ के कोमल-मृदुल ममतामयी ओजपूर्ण रूप की उपासना की जाती है। मान्यता है कि यहाँ माँगी मुराद कभी अधूरी नहीं रहती। कि राजा हो या रंक यहां सभी घुटनों के बल चलकर माँ के दर पर पहुँचते हैं।

यह मंदिर गुजरात-राजस्थान सीमा पर स्थित है। माना जाता है कि यह मंदिर लगभग बारह सौ साल पुराना है। इस मंदिर के जीर्णोद्धार का काम 1975 से शुरू हुआ था और तब से अब तक जारी है। श्वेत संगमरमर से निर्मित यह मंदिर बेहद भव्य है। मंदिर का शिखर एक सौ तीन फुट ऊँचा है। शिखर पर 358 स्वर्ण कलश सुसज्जित हैं

मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर गब्बर नामक पहाड़ है। इस पहाड़ पर भी देवी माँ का प्राचीन मंदिर स्थापित है। माना जाता है यहाँ एक पत्थर पर माँ के पदचिह्न बने हैं। पदचिह्नों के साथ-साथ माँ के रथचिह्न भी बने हैं। अम्बाजी के दर्शन के उपरान्त श्रद्धालु गब्बर जरूर जाते हैं।

अम्बाजी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ पर भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार संपन्न हुआ था। वहीं भगवान राम भी शक्ति की उपासना के लिए यहाँ चुके हैं। हर साल भाद्रपदी पूर्णिमा के मौके पर यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु जमा होते हैं।

विशेष आकर्षण: नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्र पर्व में श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहाँ माता के दर्शन के लिए आते हैं। इस समय मंदिर प्रांगण में गरबा करके शक्ति की आराधना की जाती है। समूचे गुजरात से कृषक अपने परिवार के सदस्यों के साथ माँ के दर्शन के लिए एकत्रित होते हैं।

व्यापक स्तर पर मनाए जाने वाले इस समारोह मेंभवईऔरगरबाजैसे नृत्यों का प्रबंध किया जाता है। साथ ही यहाँ परसप्तशती’ (माँ की सात सौ स्तुतियाँ) का पाठ भी आयोजित किया जाता है। भाद्रपदी पूर्णिमा को इस मंदिर में एकत्रित होने वाले श्रद्धालु पास में ही स्थित गब्बरगढ़ नामक पर्वत श्रृंखला पर भी जाते हैं, जो इस मंदिर से दो मील दूर पश्चिम की दिशा में स्थित है। प्रत्येक माह पूर्णिमा और अष्टमी तिथि पर यहाँ माँ की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।

कैसे पहुँचें: अम्बाजी मंदिर गुजरात और राजस्थान की सीमा से लगा हुआ है। आप यहाँ राजस्थान या गुजरात जिस भी रास्ते से चाहें पहुँच सकते हैं। यहाँ से सबसे नजदीक स्टेशन माउंटआबू का पड़ता है। आप अहमदाबाद से हवाई सफर भी कर सकते हैं। अम्बाजी मंदिर अहमदाबाद से 180 किलोमीटर और माउंटआबू से 45 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।

2 comments:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

जय जय अम्बे मात की जय !! मैँ गई थी २६ वर्ष हुए ..और मेरे पैर कुमकुम से रँग गये थे
आपने आज अम्बाजी की यात्रा करवा दी ..बहुत उपकार किया ..जानकारी भी पढी और मन श्रध्धा से माँ के चरणोँ पर लगा
आभार -

- लावण्या

Ruby said...

apka pura lekh hu b hu WEBDUNIYA.COM pr bhi hai...chori kisne ki hai...?????