.....ChArAn.....
महामाया का स्मरण करना , सत्य बोलना , उतम सलाह देना , प्रजा हितेषी कर्म चारणों का कार्य व पहचान हे !
Sunday, March 1, 2009
३५. श्री करणी धाम साठीका
साठीका मे मौड़ बांधकर किनियानी जिस तोरण के नीचे से निकल बीठू परिवार कि सदस्या बन गई , वही पुन्यस्थल श्री करणी धाम साठीका कहलाता हे ! लोग करणी धाम कि जात देने इसी स्थान पर आते हे ! इस टीले का रज रज पवित्र हे ! माताए अपने बच्चो को इस बालू रेत मे लौटाती हे ! फिर उनकी पीठ थपथपाती हे ! यात्री पसरकर इसी टीले को प्रणाम करते हे! लौटते समय पवित्र धूलि सर पर धारण करते हे ! नवरात्री मे इस निर्जन टीले पर मेला मंड जाता हे ! महिलाए लोक गीत गाती हे! माता को मनाती हे !दो खेजडियो के मध्य एक त्रिशूल स्थापित हे ! इसी कि पूजा होती हे ! कहते हे इन दोनों खेजडियो के बीच तोरण द्वार था! सुना हे कि साठीका कि तोरण खेजडी सन् १९५७ तक हरी थी , फिर सूखने लगी ! त्रिशूल वही खड़ा हे , खेजडी का अवशेष मात्र रह गया हे!
पिछले साथ सो वर्षो से साठीका तीन जगह बसा हे ! आरम्भ मे साठीका उस स्थान पर बसा हुवा था , जहा पावन टीला था , सामने मैदान हे ! जहा श्री करणी धाम साठीका का निर्माण कार्य चल रहा हे ! जब श्री करणी माता साठीका को छोड़कर जाग्लू कि और जाने को हुवी तो ग्रामवासियों को वचन दिया था कि मे सदा तुम्हारे साथ रहूगी ,मेरा तोरण यही रहेगा इसे संभाल कर रखना ! मेरी याद आए तो तोरण के दर्शन कर लेना ! तत्पश्चात साठीका गाव थोड़ा पश्चिम मे कुवो के पास आकर बस गया ! यही श्री करणी तोरण मंदीर कि स्थापना हुवी !
साठीका ग्राम तहसील नोखा जिला बीकानेर मे हे ! देशनोक से साठीका ५२ किलो मीटर कि दुरी पर हे !
Friday, January 30, 2009
34. जब मां बनी जवानों की ढाल !
लोगों का विश्वास है कि वर्ष 1965एवं 1971में हुए युद्धों में तनोटमाता ने अपने प्रभाव क्षेत्र में गिरने वाले पाकिस्तानी बमों को निष्क्रिय बनाते हुए किसी को फटने नहीं दिया। ऐसे अनेक निष्क्रिय गोले आज भी माता के मंदिर में इसकी चमत्कारी शक्ति के साक्ष्य बने हुए हैं। माता की शक्ति सेना एवं सीमा सुरक्षा बल के जवानों के सामने उजागर हुई और वर्तमान में पूजा-अर्चना तथा मंदिर की व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी सीमा सुरक्षा बल के जवानों ने संभाल रखी है।
एक समय था जब भाटी शासकों की कुलदेवीमानी जाने वाली तनोटमाता की मूर्ति खेजडी के वृक्ष के नीचे स्थापित करके पूजा-अर्चना की जाती थी, लेकिन आज अपने चमत्कार एवं सद्भावना के कारण वहां विशाल मंदिर बन चुका है और माता के दर्शन एवं भक्तों के लिए ठहरने एवं खाने पीने की सभी सुविधा नि:शुल्क प्रदान की जा रही है।
सीमा सुरक्षा बल के राजस्थान सीमांत के अधिकारियों ने बताया कि मंदिर में दिन में तीन बार होने वाली पूजा एवं आरती में बल के जवान धर्म जाति को भूल बढ-चढ कर भाग लेते हैं। यज्ञ एवं हवन में जवान आहुतियां देते हैं। इन अवसरों पर ऐसा नजारा देखने को मिलता है कि यह हिंदू देवी नहीं होकर कोई सद्भावना देवी हो। पांच प्रकार से राजस्थानी भाषा में मां की आरती की जाती है।
श्रद्धालुओं के लिए सीमा सुरक्षा बल ने करीब 35लाख रुपये की लागत से 12कमरों वाली धर्मशाला का निर्माण कराया है तथा 20लाख रुपये की लागत से एक बडा सभागार का निर्माण कार्य कराया जा रहा है जिसमें माता के भजन, कीर्तन एवं साधु संतों के प्रवचन कराए जाएंगे।
सूत्रों ने बताया कि जैसलमेरजिला मुख्यालय से करीब 70किलोमीटर एवं अंतर्राष्ट्रीय सीमा से 20किलोमीटर अंदर की तरफ स्थित यह मंदिर वर्तमान में श्रद्धालुओं के लिए श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। यहां वर्ष भर भक्तों का आना जाना लगा रहता है, लेकिन नवरात्रों के समय यहां विशेष भीड देखने को मिलती है। ऐसे मौकों पर मंदिर में पांच-छह स्थानों पर सीसी टीवी लगा दिए जाते हैं ताकि सभी भक्तों को आरती एवं माता के दर्शन होते रहे। गत दिनों मुख्यमंत्री वसुंधरा राजेने भी तनोटमाता के दर्शन किए और वहां एक रात्रि ठहर कर सभी व्यवस्थाओं का जायजा लिया।
मुख्यमंत्री के आदेश से अब जोधपुर से सीधे तनोटतक श्रद्धालुओं के लिए रोडवेज बस की सुविधाएं भी शुरू की जा चुकी हैं। श्रद्धालु माता से मन्नत मांगते हैं और वहां एक रुमाल बांधकर जाते हैं। मिन्नत पूर्ण होने पर बांधा रुमाल खोलने दुबारा यहां आते हैं। मंदिर परिसर में लाखों ऐसे श्रद्धालुओं के रुमाल बंधे हुए हैं। बल के जवानों ने यहां बिना लाभ-हानि के कैंटीन भी संचालित कर रखी है। इस क्षेत्र में भारत संचार निगम लिमटेडअपना टावर भी लगा रहा है जिससे श्रद्धालुओं को मोबाइल नेटवर्क मिलने लगेगा।
तनोटसे करीब पांच किलोमीटर पहले घंटियालीमाता का मंदिर बना हुआ है। ऐसी मान्यता है कि तनोटमाता का दर्शन लाभ प्राप्त करने के लिए पहले घंटियालीमाता का दर्शन करना आवश्यक होता है। बल ने अब इस मंदिर के विकास का भी मन बनाया है और वहां करीब छह बीघा जमीन अधिग्रहण की है जिसमें एक बडी धर्मशाला का निर्माण प्रस्तावित है। इस माता के लिए चांदी का सिंहासन भी लगाया जा चुका है। इन दोनों मंदिरों में विद्युत कनेक्शन की भी व्यवस्था बल द्वारा की जा चुकी है।
Tuesday, January 27, 2009
३३. अम्बाजी
अम्बाजी : आबू के पास आरासुर श्वेत पर्वत पर अम्बाजी का मंदीर हे ! लोकदेवी के रूप मे अम्बाजी की बड़ी मान्यता हे ! भक्तो की भीड़ लगी रहती हे ! अम्बाजी चक्खड़ा चारण की बहिन थी और बिरवड़ी जी चक्खड़ा चारण की पुत्री थी !
गुजरात का अम्बाजी मंदिर। माँ अम्बा-भवानी के शक्तिपीठों में से एक इस मंदिर के प्रति माँ के भक्तों में अपार श्रद्धा है। यह मंदिर बेहद प्राचीन है। मंदिर के गर्भगृह में माँ की कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है। यहाँ माँ का एक श्री-यंत्र स्थापित है। इस श्री-यंत्र को कुछ इस प्रकार सजाया जाता है कि देखने वाले को लगे कि माँ अम्बे यहाँ साक्षात विराजी हैं। नवरात्र में यहाँ का पूरा वातावरण शक्तिमय रहता है।
शक्तिस्वरूपा अम्बाजी देश के अत्यंत प्राचीन 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। वस्तुतः हिंदू धर्म के प्रमुख बारह शक्तिपीठ हैं। इनमें से कुछ शक्तिपीठ हैं- काँचीपुरम का कामाक्षी मंदिर, मलयगिरि का ब्रह्मारंब मंदिर, कन्याकुमारी का कुमारिका मंदिर, अमर्त-गुजरात स्थित अम्बाजी का मंदिर, कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर, प्रयाग का देवी ललिता का मंदिर, विंध्या स्थित विंध्यवासिनी माता का मंदिर, वाराणसी की माँ विशालाक्षी का मंदिर, गया स्थित मंगलावती और बंगाल की सुंदर भवानी और असम की कामख्या देवी का मंदिर। ज्ञात हो कि सभी शक्तिपीठों में माँ के अंग गिरे हैं।
अम्बा भवानी मंदिर में माँ का दिल गिरा है। दिल गिरने के कारण यहाँ माँ के कोमल-मृदुल ममतामयी ओजपूर्ण रूप की उपासना की जाती है। मान्यता है कि यहाँ माँगी मुराद कभी अधूरी नहीं रहती। कि राजा हो या रंक यहां सभी घुटनों के बल चलकर माँ के दर पर पहुँचते हैं।
यह मंदिर गुजरात-राजस्थान सीमा पर स्थित है। माना जाता है कि यह मंदिर लगभग बारह सौ साल पुराना है। इस मंदिर के जीर्णोद्धार का काम 1975 से शुरू हुआ था और तब से अब तक जारी है। श्वेत संगमरमर से निर्मित यह मंदिर बेहद भव्य है। मंदिर का शिखर एक सौ तीन फुट ऊँचा है। शिखर पर 358 स्वर्ण कलश सुसज्जित हैं।
मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर गब्बर नामक पहाड़ है। इस पहाड़ पर भी देवी माँ का प्राचीन मंदिर स्थापित है। माना जाता है यहाँ एक पत्थर पर माँ के पदचिह्न बने हैं। पदचिह्नों के साथ-साथ माँ के रथचिह्न भी बने हैं। अम्बाजी के दर्शन के उपरान्त श्रद्धालु गब्बर जरूर जाते हैं।
अम्बाजी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ पर भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार संपन्न हुआ था। वहीं भगवान राम भी शक्ति की उपासना के लिए यहाँ आ चुके हैं। हर साल भाद्रपदी पूर्णिमा के मौके पर यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु जमा होते हैं।
विशेष आकर्षण: नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्र पर्व में श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहाँ माता के दर्शन के लिए आते हैं। इस समय मंदिर प्रांगण में गरबा करके शक्ति की आराधना की जाती है। समूचे गुजरात से कृषक अपने परिवार के सदस्यों के साथ माँ के दर्शन के लिए एकत्रित होते हैं।
व्यापक स्तर पर मनाए जाने वाले इस समारोह में ‘भवई’ और ‘गरबा’ जैसे नृत्यों का प्रबंध किया जाता है। साथ ही यहाँ पर ‘सप्तशती’ (माँ की सात सौ स्तुतियाँ) का पाठ भी आयोजित किया जाता है। भाद्रपदी पूर्णिमा को इस मंदिर में एकत्रित होने वाले श्रद्धालु पास में ही स्थित गब्बरगढ़ नामक पर्वत श्रृंखला पर भी जाते हैं, जो इस मंदिर से दो मील दूर पश्चिम की दिशा में स्थित है। प्रत्येक माह पूर्णिमा और अष्टमी तिथि पर यहाँ माँ की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
कैसे पहुँचें: अम्बाजी मंदिर गुजरात और राजस्थान की सीमा से लगा हुआ है। आप यहाँ राजस्थान या गुजरात जिस भी रास्ते से चाहें पहुँच सकते हैं। यहाँ से सबसे नजदीक स्टेशन माउंटआबू का पड़ता है। आप अहमदाबाद से हवाई सफर भी कर सकते हैं। अम्बाजी मंदिर अहमदाबाद से 180 किलोमीटर और माउंटआबू से 45 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।